इस सिद्धांत का प्रतिपादन कोलंबिया विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रोफेसर पॉल एफ. लेजर्सफेल्ड ने सन 1948 में किया है। बुलेट सिद्धान्त की आलोचना के बाद लेजर्सफेल्ड ने व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत के अंतर्गत दावा किया है कि समाज में जनमाध्यमों की अपेक्षा व्यक्तिगत संचार अधिक प्रभावशाली है, क्योंकि प्रापक जनमाध्यमों को अनदेखा कर सकता है, लेकिन व्यक्तिगत सम्बन्धों को नहीं। प्रो. लेजर्सफेल्ड के अनुसार- प्रभावी संचार के लिए संचारक और प्रापक का एक-दूसरे के करीब होना बेहद जरूरी है। व्यक्तिगत संचार तभी प्रारंभ होता है, जब संचारक और प्रापक भौगोलिक व भावनात्मक दृष्टि से एक-दूसरे के करीब होते हैं। इस आधार पर जनमाध्यमों की मदद से सम्प्रेषित संदेश को प्रभावी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि सम्प्रेषण के दौरान प्रापक संदेश ग्रहण करने के लिए जनमाध्यमों के पास मौजूद हो भी सकता है और नहीं थी। इसी प्रकार, दोनों के बीच भावनात्मक सम्बन्ध हो भी सकता है और नहीं भी। अत: संचारक और प्रापक के आपस में अपरचित होने से जनमाध्यमों द्वारा सम्प्रेषित संदेश अवैयक्तिक होता है। व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत को संचार का द्वि-चरणीय प्रवाह सिद्धांत भी कहते हैं।
व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत : प्रोफेसर लेजर्सफेल्ड ने अपने समाजशास्त्री साथी बेरलसन, काटजू, गाइल के साथ मिलकर 1940 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में संचार माध्यमों के प्रभाव का अध्ययन तथा इसी आधार पर 1944 में 'दी पीपुल्स च्वाइस' नामक पुस्तक प्रकाशित किया। अध्ययन के दौरान उनकी टीम ने चार समूहों क्रमश: A, B, C और D के 600 मतदाता का पहला साक्षात्कार मई, 1940 में लिया। इसके बाद समूह-A के मतदाताओं का नवंबर से प्रत्येक माह चुनाव होने तक तथा शेष तीन समूह-B, C और D के मतदाताओं का जुलाई, अगस्त व अक्तूबर माह में साक्षात्कार लिया। इसके परिणाम काफी आश्चर्यजनक निकले, क्योंकि अध्ययन के दौरान पाया गया कि मतदाताओं पर जनमाध्यमों का कम तथा व्यक्तिगत सम्पर्कों (ओपीनियन लीडर) का ज्यादा प्रभाव था। जनमाध्यमों पर प्रसारित संदेश पहले ओपीनियन लीडर तक पहुंचते थे। ओपीनियन लीडर संदेश को अपने निकटस्थ लोगों या समर्थकों तक पहुंचा देते थे। शोध के दौरान यह भी पाया गया कि ओपीनियन लीडर प्रतिदिन रेडियो सुनते और समाचार-पत्र पढ़ते थे तथा समाज के कम सक्रिय किन्तु व्यापक संख्या वाले लोगों तक संदेशों को पहुंचा देते थे। इनके प्रभाव के कारण मई से नवंबर माह के बीच आठ प्रतिशत मतदाताओं ने अपना उम्मीदवार बदला। कई मतदाताओं ने व्यक्तिगत प्रभाव के कारण अपने उम्मीदवार का निर्णय देर से लिया। एक महिला होटल कर्मी ने शोधार्थियों को बताया कि उसने वोट देने का निर्णय एक ऐसे ग्राहक की बातों से प्रभावित होकर लिया, जिसे वह जानती तक नहीं थी। लेकिन उसकी बातें सुनकर ऐसा लग रहा था कि मानों वह जिसके बारे में बात कर रहा है, उसके बारे में सबकुछ जानता है। इसी आधार पर प्रोफेसर लेजर्सफेल्ड ने संचार के व्यक्तिकत प्रभाव (द्वि-चरणीय प्रवाह) सिद्धांत का प्रतिपादन किया। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि ...ओपीनियन लीडर कौन होते हैं?
व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत : प्रोफेसर लेजर्सफेल्ड ने अपने समाजशास्त्री साथी बेरलसन, काटजू, गाइल के साथ मिलकर 1940 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में संचार माध्यमों के प्रभाव का अध्ययन तथा इसी आधार पर 1944 में 'दी पीपुल्स च्वाइस' नामक पुस्तक प्रकाशित किया। अध्ययन के दौरान उनकी टीम ने चार समूहों क्रमश: A, B, C और D के 600 मतदाता का पहला साक्षात्कार मई, 1940 में लिया। इसके बाद समूह-A के मतदाताओं का नवंबर से प्रत्येक माह चुनाव होने तक तथा शेष तीन समूह-B, C और D के मतदाताओं का जुलाई, अगस्त व अक्तूबर माह में साक्षात्कार लिया। इसके परिणाम काफी आश्चर्यजनक निकले, क्योंकि अध्ययन के दौरान पाया गया कि मतदाताओं पर जनमाध्यमों का कम तथा व्यक्तिगत सम्पर्कों (ओपीनियन लीडर) का ज्यादा प्रभाव था। जनमाध्यमों पर प्रसारित संदेश पहले ओपीनियन लीडर तक पहुंचते थे। ओपीनियन लीडर संदेश को अपने निकटस्थ लोगों या समर्थकों तक पहुंचा देते थे। शोध के दौरान यह भी पाया गया कि ओपीनियन लीडर प्रतिदिन रेडियो सुनते और समाचार-पत्र पढ़ते थे तथा समाज के कम सक्रिय किन्तु व्यापक संख्या वाले लोगों तक संदेशों को पहुंचा देते थे। इनके प्रभाव के कारण मई से नवंबर माह के बीच आठ प्रतिशत मतदाताओं ने अपना उम्मीदवार बदला। कई मतदाताओं ने व्यक्तिगत प्रभाव के कारण अपने उम्मीदवार का निर्णय देर से लिया। एक महिला होटल कर्मी ने शोधार्थियों को बताया कि उसने वोट देने का निर्णय एक ऐसे ग्राहक की बातों से प्रभावित होकर लिया, जिसे वह जानती तक नहीं थी। लेकिन उसकी बातें सुनकर ऐसा लग रहा था कि मानों वह जिसके बारे में बात कर रहा है, उसके बारे में सबकुछ जानता है। इसी आधार पर प्रोफेसर लेजर्सफेल्ड ने संचार के व्यक्तिकत प्रभाव (द्वि-चरणीय प्रवाह) सिद्धांत का प्रतिपादन किया। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि ...ओपीनियन लीडर कौन होते हैं?
ओपीनियन लीडर : समाज का वह प्रभावशाली व्यक्ति है, जिसके पास कोई संवैधानिक शक्ति तो नहीं होती है, किन्तु अपने क्षेत्र या विषय के विशेषज्ञ होने के कारण जनमत को प्रभावित करने की हैसियत रखते है। ऐसे व्यक्ति को ओपीनियन लीडर कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- ओपीनियन लीडर जनमाध्यम और जनता के बीच एक सेतू की तरह होता है।
अपने अध्ययन के दौरान प्रोफेसर लेजर्सफेल्ड व उनके साथियों ने ओपीनियन लीडर को चिन्हित करने के लिए मतदाताओं से सवाल पूछा कि- विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय बनाने के लिए किससे सलाह करते हैं? इस सवाल के अधिकांश जवाब में प्रभावशाली व्यक्ति ही थे, जो समाज के अन्य सदस्यों की अपेक्षा अधिक अनुभवी, कर्मठ व चौकन्ना थे तथा समाज के सभी मामलों में दिलचस्पी लेता है। अध्ययन के दौरान पाया गया कि सभी समाज में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति अवश्य होता है, जो ओपीनियन लीडर की भूमिका निभाता है। ओपीनियन लीडर जनमाध्यमों का प्रयोग सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक करते हैं। साथ ही जनमाध्यमों और अपने समाज के सदस्यों के बीच मध्यस्थता का काम भी करते हैं। अधिकांशत: लोग इन लीडरों से ही संदेश प्राप्त करते है। यहीं व्यक्तिगत प्रभाव के सिद्धांत का आधार भी है।
विशेषताएं : व्यक्तिगत प्रभाव (द्वि-चरणीय प्रवाह) सिद्धांत में आम जनता पर ओपीनियन लीडर का प्रभाव अत्यधिक होता है, क्योंकि-
(1) जनमाध्यमों पर प्रसारित संदेशों को आम लोगों की अपेक्षा ओपीनियन लीडर अधिक गंभीरता व उत्सुकता से सुनते हैं।
(2) ओपीनियन लीडर के पास एक से अधिक जनमाध्यम होते हैं, जिन पर प्रसारित संदेशों एवं सूचनाओं की सत्यता को परखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।
(3) ओपीनियन लीडर विभिन्न सामाजिक कार्यों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं, जिसके कारण उसके विचार स्वत: ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
(4) ओपीनियन लीडर अपने समर्थकों के बीच बड़ी सहजता से पहुंच जाते हैं तथा सूचनाओं का प्रचार-प्रसार कर निर्णायक भूमिका निभाते हंै।
(5) ओपीनियन लीडर आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के कारण अच्छी सामाजिक हैसियत रखते हैं, जिसके चलते लोग उसके संदेशों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
(6) ओपीनियन लीडर किसी भी प्रकार के संशय की स्थिति में अपने समर्थकों से विचार-विमर्श करते हैं और उचित परामर्श को स्वीकार करते हैं।
निष्कर्ष : अपने अध्ययन के दौरान संचार विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकला कि संदेश ग्रहण करने मात्र से ही मानव के व्यवहार व सोच में परिवर्तन नहीं हो जाता है। इसमें काफी समय लगता है। इस प्रक्रिया की रफ्तार काफी धीमी है। जनमाध्यमों द्वारा सम्प्रेषित संदेश का सभी प्रापकों पर एक समान प्रभाव नहीं पड़ता है। इसे ओपिनियन लीडर अपने प्रभाव से स्थापित करता है।
आलोचना : इस सिद्धांत की आलोचना कई संचार विशेषज्ञों ने की है। इनका मानना है कि व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत में जनमाध्यमों की भूमिका को एकदम से नकार दिया गया है तथा ओपीनियन लीडर की भूमिका को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है, जो उचित नहीं है। डेनियलसन का तर्क है कि जनमाध्यमों की पहुंच समाज में व्यापक लोगों के बीच होती है, जिनके माध्यम से लोग सीधे संदेश ग्रहण करते हैं। इसके लिए किसी मीडिल मैन (ओपीनियन लीडर) की जरूरत नहीं है।
विशेषताएं : व्यक्तिगत प्रभाव (द्वि-चरणीय प्रवाह) सिद्धांत में आम जनता पर ओपीनियन लीडर का प्रभाव अत्यधिक होता है, क्योंकि-
(1) जनमाध्यमों पर प्रसारित संदेशों को आम लोगों की अपेक्षा ओपीनियन लीडर अधिक गंभीरता व उत्सुकता से सुनते हैं।
(2) ओपीनियन लीडर के पास एक से अधिक जनमाध्यम होते हैं, जिन पर प्रसारित संदेशों एवं सूचनाओं की सत्यता को परखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।
(3) ओपीनियन लीडर विभिन्न सामाजिक कार्यों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं, जिसके कारण उसके विचार स्वत: ही महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
(4) ओपीनियन लीडर अपने समर्थकों के बीच बड़ी सहजता से पहुंच जाते हैं तथा सूचनाओं का प्रचार-प्रसार कर निर्णायक भूमिका निभाते हंै।
(5) ओपीनियन लीडर आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के कारण अच्छी सामाजिक हैसियत रखते हैं, जिसके चलते लोग उसके संदेशों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
(6) ओपीनियन लीडर किसी भी प्रकार के संशय की स्थिति में अपने समर्थकों से विचार-विमर्श करते हैं और उचित परामर्श को स्वीकार करते हैं।
निष्कर्ष : अपने अध्ययन के दौरान संचार विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकला कि संदेश ग्रहण करने मात्र से ही मानव के व्यवहार व सोच में परिवर्तन नहीं हो जाता है। इसमें काफी समय लगता है। इस प्रक्रिया की रफ्तार काफी धीमी है। जनमाध्यमों द्वारा सम्प्रेषित संदेश का सभी प्रापकों पर एक समान प्रभाव नहीं पड़ता है। इसे ओपिनियन लीडर अपने प्रभाव से स्थापित करता है।
आलोचना : इस सिद्धांत की आलोचना कई संचार विशेषज्ञों ने की है। इनका मानना है कि व्यक्तिगत प्रभाव सिद्धांत में जनमाध्यमों की भूमिका को एकदम से नकार दिया गया है तथा ओपीनियन लीडर की भूमिका को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है, जो उचित नहीं है। डेनियलसन का तर्क है कि जनमाध्यमों की पहुंच समाज में व्यापक लोगों के बीच होती है, जिनके माध्यम से लोग सीधे संदेश ग्रहण करते हैं। इसके लिए किसी मीडिल मैन (ओपीनियन लीडर) की जरूरत नहीं है।
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(यह चौथी सत्ता ब्लाग के मॉडरेट द्वारा लिखित पुस्तक- 'भारत में जनसंचार एवं पत्रकारिता' का संपादित अंश है। उक्त पुस्तक को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तक निर्माण योजना के अंतर्गत हरियाणा ग्रंथ अकादमी, पंचकूला ने प्रकाशित किया है। पुस्तक के लिए 0172-2566521 पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी तथा 09418130967 पर लेखक से सम्पर्क किया जा सकता है।)
Good
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