शनिवार

संचार माध्यम (Communication Medium)


         संचार माध्यम को अंग्रेजी मे Communication Medium संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादिकाल से ही रहा है। संचार माध्यम स्रोत एवं श्रोता के मध्य एक मध्य-स्थल दृश्य है जो मुख्यत: सूचना को संचारक से लेता है तथा प्रापक को देता है। प्रकृति के आधार पर संचार माध्यमों का वर्गीकरण निम्नलिखित है :-
  1.  परम्परागत माध्यम : संचार के परम्परागत माध्यम का उद्भव अनादिकाल में ही हो गया था। तब मानव संचार का अर्थ तक नहीं जानता था। सभ्यता के विकास से मुद्रण के आविष्कार तक परम्परागत माध्यमों से ही संदेश का सम्प्रेषण (संचार) होता था। इन माध्यमों द्वारा सम्प्रेषित संदेश का प्रभाव समाज के साक्षर और निरक्षर दोनों तरह के लोगों पर होता था। इसके अंतर्गत धार्मिक प्रवचन, हरिकथा, सभा, पर्यटन, गारी, गीत, संगीत, लोक संगीत, नृत्य, रामलीला, रासलीला, कठपुतली, कहानी, कथा, किस्सा, मेला, उत्सव, चित्र, शीला-लेख, संकेत इत्यादि आते हैं। इस प्रकार के परम्परागत माध्यम अनादिकाल से ही संदेश सम्प्रेषण के साथ मनोरंजन का कार्य भी करते आ रहे हैं। दंगल (कुश्ती), खेलकूद, लोकगीत प्रतियोगिता के आयोजन के पीछे प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ लोगों के समक्ष स्वस्थ्य मनोरंजन प्रस्तुत करना था। 
  1. मुद्रित माध्यम : जर्मनी के जॉन गुटेनवर्ग ने टाइप का निर्माण किया, जो मुद्रण (प्रिंटिंग प्रेस) का आधार बना है। मुद्रण के आविष्कार के बाद संचार के क्षेत्र में क्रांति आ गयी। हालांकि इससे पूूर्व हस्तलिखित पत्रों के माध्यम से सूचना सम्प्रेषण का कार्य प्रारंभ हो चुका था, लेकिन उसकी पहुंच कुछ सीमित लोगों तक ही थी। मुद्रित माध्यम के प्रचलन के बाद संचार को मानो पर लग गया। प्रारंभ में मुद्रित माध्यम के रूप में केवल पुस्तक को प्रचलन था, किन्तु बाद में समाचार पत्र, पत्रिका, पम्पलेट, पोस्टर इत्यादि मुद्रित माध्यम के रूप में संचार का कार्य करने लगे। वर्तमान समय में भी शिक्षित जनमानस के बीच मुद्रित माध्यमों का काफी प्रचलन है। मुद्रण तकनीकी के क्षेत्र में लगातार हो रहे विकास ने मुद्रित माध्यमों को पहले की अपेक्षा काफी अधिक प्रभावी बना दिया है। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनके संदेश को कई बार पढ़ा, दूसरो को पढ़ाया तथा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। 
  1. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम : टेलीग्राफ के आविष्कार से संचार को इलेक्ट्रानिक माध्यम मिल गया। इसकी मदद से दूर-दराज के क्षेत्रों में त्वरित गति से सूचना का सम्प्रेषण संभव हो सकता। इसके बाद क्रमश: टेलीफोन, रेडियो, वायरलेस, सिनेमा, टेप रिकार्डर, टेलीविजन, वीडियो कैसेट रिकार्डर, कम्प्यूटर, मोडम, इंटरनेट, सीडी/डीवीडी प्लेयर, पॉडकास्टर इत्यादि के आविष्कार से संचार क्रांति आ गई। इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों को उनकी प्रकृति के आधार पर श्रव्य और दृश्य-श्रव्य माध्यमों में विभाजित किया जा सकता है। श्रव्य माध्यम के अंतर्गत टेलीफोन, रेडियो, वायरलेस, टेपरिकार्डर इत्यादि तथा दृश्य-श्रव्य माध्यम के अंतर्गत सिनेमा, टेलीविजन, वीडियो कैसेट प्लेयर, सीडी/डीवीडी प्लेयर इत्यादि आते हैं। इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम को द्रूतगति का संचार माध्यम भी कहते हैं। इनकी मदद से लाखों-करोड़ों की संख्या वाले तथा दूर-दूर तक बिखरे लोगों के पास सूचना का सम्प्रेषण संभव हो सका है। 

 संचार के उपरोक्त तीनों माध्यम मानव सभ्यता के विकास का परिचायक है। तीनों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। संचार क्रांति के मौजूदा युग में भी परम्परागत माध्यम अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम है, क्योंकि मुद्रित माध्यम माध्यम की केवल पढ़े-लिखे तथा इलेक्ट्रॉनिक की केवल साधन सम्पन्न समाज के बीच लोकप्रियता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत गांवों का देश है, जहां की 70 फीसदी आबादी की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन खेती-किसानी है। गांवों की हालात 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में भी संतोष जनक नहीं है। कमोवेश यहीं स्थिति तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों की है। 


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